November 10, 2024
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इसरो 17 फरवरी को सबसे एडवांस मौसम सैटेलाइट करेगा लॉन्च, आपदाओं से बचाएगा

श्रीहिकोटा
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा बनवाया गया INSAT-3DS सैटेलाइट 17 फरवरी 2024 को लॉन्च होगा. लॉन्चिंग GSLV रॉकेट से शाम साढ़े बजे श्रीहिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर होगी. इस सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GRO) तैनात किया जाएगा. रॉकेट की असेंबलिंग का काम शुरू हो चुका है. सैटेलाइट को रॉकेट के आखिरी स्टेज यानी नोज में रख दिया गया है.

इस सैटेलाइट का मुख्य उद्देश्य जमीन, समंदर, मौसम और इमरजेंसी सिग्नल सिस्टम की जानकारी मुहैया कराना है. इसके अलावा यह राहत एवं बचाव कार्यों में भी मदद करेगा. इनसैट-3 सीरीज के सैटेलाइट में छह अलग-अलग प्रकार के जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स है. यह सातवीं सैटेलाइट है.

इनसैट सीरीज के पहले की सभी सैटेलाइट्स को साल 2000 से 2004 के बीच लॉन्च किया गया था. जिससे संचार, टीवी ब्रॉडकास्ट और मौसम संबंधी जानकारियां मिल रही थीं. इन सैटेलाइट्स में 3ए, 3डी और 3डी प्राइम सैटेलाइट्स के पास मौसम संबंधी आधुनिक यंत्र लगे हैं.

ये सभी सैटेलाइट्स भारत और उसके आसपास मौसमी बदलावों की सटीक और समय से पहले जानकारी देते हैं. इनमें से हर एक सैटेलाइट ने भारत और उसके आसपास के इलाकों में संचार तकनीक और मौसम संबंधी तकनीकों को विकसित करने में मदद की है.

इन सैटेलाइट्स को भूमध्यरेखा के ऊपर तैनात किया जाता है, जिससे ये भारतीय इलाकों पर बारीक नजर रख पाते हैं. इस सैटेलाइट को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) ने फंडिंग की है. इस सैटेलाइट का वजन 2275 किलोग्राम है. इस सैटेलाइट में 6 चैनल इमेजर हौं. 19 चैनल साउंडर मेटियोरोलॉजी पेलोड्स मौजूद हैं.

इन सैटेलाइट्स का संचालन इसरो के साथ-साथ भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) करता है. ताकि लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के आने से पहले ही जानकारी दी जा सके. उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके. इसरो की इस साल यह दूसरी सैटेलाइट लॉन्चिंग होगी. पहले इसे जनवरी में लॉन्च किया जाना था. लेकिन बाद में इसे रीशेड्यूल किया गया.

उपग्रह कहां तैनात किए जाते हैं
 ये उपग्रह भूमध्य रेखा के ऊपर तैनात किए जाते हैं। जिससे भारतीय उपमहाद्वीप पर कड़ी नजर रखना संभव हो जाता है। इन उपग्रहों को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। इन उपग्रहों का वजन 2275 किलोग्राम है। उपग्रह 6 चैनल इमेजर और 19 चैनल साउंडर मौसम विज्ञान पेलोड ले जाएगा। इन उपग्रहों का संचालन इसरो के साथ-साथ भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा किया जाता है।इस प्रकार, प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने से पहले जनता को सूचित करना संभव है। उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाना संभव है| इस साल यह इसरो का दूसरा उपग्रह प्रक्षेपण होगा। पहले इस सैटेलाइट को जनवरी में लॉन्च किया जाना था, लेकिन इसकी लॉन्चिंग टाल दी गई|

क्‍या है इस म‍िशन का मतलब
इसरो के अनुसार, मिशन का प्राथमिक उद्देश्य हैं: पृथ्वी की सतह की निगरानी करना, मौसम संबंधी महत्वपूवर्ण घटनाचक्र के बारे में जानकारी देना और समुद्र का अवलोकन करना और उसके पर्यावरण को पूरा करना, वायुमंडल के विभिन्न मौसम संबंधी मापदंडों का प्रोफाइल प्रदान करना, डेटा संग्रह प्रदान करना और डेटा संग्रह प्लेटफॉर्म (डीसीपी) से डेटा प्रसार क्षमताएं और सैटेलाइट सहायता प्राप्त खोज और बचाव सेवाएं प्रदान करना.

इन्हें उपग्रह के पेलोड जैसे छह चैनल इमेजर, 19 चैनल साउंडर, डेटा रिले ट्रांसपोंडर (डीआरटी) और सैटेलाइट एडेड सर्च एंड रेस्क्यू ट्रांसपोंडर (एसएएस एंड आर) के माध्यम से हासिल किया जाएगा. MoES के कई विभाग जैसे भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), राष्ट्रीय मध्यम-सीमा मौसम पूर्वानुमान केंद्र (NCMRWF), भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT), भारतीय राष्ट्रीय केंद्र महासागर सूचना सेवा (INCOIS) और अन्य एजेंसियां, संस्थान बेहतर मौसम पूर्वानुमान और मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए INSAT-3DS उपग्रह डेटा का उपयोग करेंगे.

क्‍या-क्‍या है लॉन्‍च‍िंग व्‍हीकल में
लॉन्‍च‍िंग व्‍हीकल के बारे में जानाकरी देते हुए इसरो ने बताया क‍ि जीएसएलवी एक तीन चरणों वाला, 51.7 मीटर लंबा वाहन है जिसका भार 420 टन है. पहले चरण (जीएस1) में एक ठोस प्रणोदक (एस139) मोटर शामिल है, जिसमें 139 टन प्रणोदक और चार पृथ्वी-भंडारण योग्य प्रणोदक चरण (एल40) स्ट्रैप-ऑन शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक में 40 टन तरल प्रणोदक होता है.

दूसरा चरण (जीएस2) भी 40-टन प्रणोदक से भरा हुआ एक पृथ्वी-भंडारणीय प्रणोदक चरण है. तीसरा चरण (GS3) एक क्रायोजेनिक चरण है जिसमें तरल ऑक्सीजन (LOX) और तरल हाइड्रोजन (LH2) की 15 टन प्रणोदक लोडिंग होती है. इसरो ने कहा कि वायुमंडलीय शासन के दौरान, उपग्रह को ऑगिव पेलोड फेयरिंग द्वारा संरक्षित किया जाता है. जीएसएलवी का उपयोग पृथ्वी संसाधन सर्वेक्षण, संचार, नेविगेशन और किसी भी अन्य स्वामित्व मिशन को करने में सक्षम विभिन्न अंतरिक्ष यान लॉन्च करने के लिए किया जा सकता है.

 

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